हिन्दी साहित्य

Saturday, July 08, 2006

बाजीगर बन गई व्यवस्था

बाजीगर बन गई व्यवस्था
हम सब हुए जमूरे
सपने कैसे होंगे पूरे

चार कदम भर चल पाये थे
पैर लगे थर्राने
क्लांत प्रगति की निरख विवशता
छाया लगी चिढाने
मन के आहत मृगछौने ने
बीते दिवस बिसूरे
सपने कैसे होंगे पूरे

हमने निज हाथों से
युग पतवार जिन्हें पकड़ाई
वे शोषक हो गये
हुए हम चिरशोषित तरुणाई
शोषण दुर्ग हुआ
अलवत्ता तोड़ो जीर्ण कँगूरे
सपने कैसे होंगे पूरे

वे तो हैं स्वच्छन्द
करेंगे जो मन में आएगा
सूरज को गाली देंगे
कोई क्या कर पायेगा
दोष व्यक्ति का नहीं
व्यवस्था में छलछिद्र घनेरे
सपने कैसे होंगे पूरे

मिला भेड़ियों को
भेड़ों की अधिरक्षा का ठेका
कुछ सफेदपोशों को मैंने
देश निगलते देखा
स्वाभिमान को बेंच उन्हें मैं
कैसे नमन करूँ रे
सपने कैसे होंगे पूरे

-डा० जगदीश व्योम

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