हिन्दी साहित्य

Saturday, July 08, 2006

गजल

बहते जल के साथ न बह
कोशिश करके मन की कह

कुछ तो खतरे होंगे ही
चाहे जहाँ कहीं भी रह

मौसम ने तेवर बदले
कुछ तो होगी खास बजह

लोग तुझे कायर समझें
इतने अत्याचार न सह

लोकतन्त्र की ये तरणी
छेद हो गये जगह जगह

-डा० जगदीश व्योम

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