मुक्तक
कर्म का दीप जला जाता है।
दर्द का शैल गला जाता है।
वक्त को कौन रोक पाया है,
वक्त आता है, चला जाता है।।
-डॉ अशोक अज्ञानी
दर्द का शैल गला जाता है।
वक्त को कौन रोक पाया है,
वक्त आता है, चला जाता है।।
-डॉ अशोक अज्ञानी
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